रस MCQ Quiz - Objective Question with Answer for रस - Download Free PDF
Last updated on Jun 5, 2025
Latest रस MCQ Objective Questions
रस Question 1:
'अपस्मार' किस तरह का भाव है?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 1 Detailed Solution
सही उत्तर 'संचारी' होगा।
Key Points
- 'अपस्मार' संचारी भाव है।
- संचारी भाव – स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जो भाव उत्पन्न होकर पुनः लुप्त हो जाते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं।
- इनकी संख्या 33 मानी गई है। निर्वेद, शंका, ग्लानि, हर्ष, आवेग आदि प्रमुख संचारी भाव हैं।
रस के अंग/ अवयव "विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रस निष्पत्तिः” |
||
अवयव |
परिभाषा |
प्रकार |
स्थायी भाव |
हृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से निवास करते हैं, स्थायी भाव कहलाते हैं। इन्हें अनुकूल या प्रतिकूल किसी प्रकार के भाव दबा नहीं पाते। |
रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा (घृणा), विस्मय, शम (निर्वेद) स्थायी भाव है। |
संचारी भाव |
स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जो भाव उत्पन्न होकर पुनः लुप्त हो जाते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनकी संख्या 33 मानी गई है। |
निर्वेद, शंका, ग्लानि, हर्ष, आवेग आदि प्रमुख संचारी भाव हैं। |
विभाव |
यी भावों को जाग्रत करने वाले कारक विभाव कहलाते हैं। |
इनके दो भेद हैं- आलम्बन और उद्दीपन |
अनुभाव |
आश्रय की बाह्य शारीरिक चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती है। |
करुण रस के अनुभाव – रोना, जमीन पर गिरना आदि अनुभाव है। |
Additional Information
शब्द |
परिभाषा |
रस |
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। |
रस Question 2:
सात्त्विक अनुभाव का भेद नहीं है -
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 2 Detailed Solution
सात्त्विक अनुभाव का भेद नहीं है -उच्छ्वास।
- उच्छ्वास का अर्थ-
- गहरी साँस; मन में कोई कष्ट या वेदना होने के कारण ली जाने वाली लंबी साँस।
- ग्रंथ का कोई अध्याय।
Key Pointsसात्विक अनुभाव-
- सत्व के योग से उत्पन्न आंगिक चेष्टाएँ।
- इसे 'अयत्नज भाव' भी कहते है।
- सात्विक अनुभाव की संख्या आठ हैं-
- स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वर-भंग, कम्प, विवर्णता, अक्षु तथा प्रलय।
Important Pointsअनुभाव-
- जो विभावों के बाद उत्पन्न होते है या जिनके द्वारा रति आदि भावों का अनुभव होता है, वे अनुभाव कहलातें है।
- इनकी संख्या चार हैं-
- कायिक - शरीर संबंधी चेष्टाएँ।
- वाचिक - स्वर के माध्यम से उत्पन्न होने वाला अनुभाव।
- आहार्य - वेशभूषा,आभूषण,सज-सज्जा आदि।
- सात्विक(मानसिक) - सत्व से उत्पन्न आंगिक चेष्टाएँ।
Additional Informationस्तम्भ-
- प्रसन्नता, लज्जा ,व्यथा आदि के कारण शरीर कि चेस्टाओं का अपने आप रुक जाना।
वैवर्ण्य अथवा विवर्णता-
- क्रोध, लज्जा, भय, मोह आदि के कारण चेहरे का रंग उड़ जाना।
प्रलय-
- मोह ,निद्रा ,मद आदि के कारण सुध - बुध खो जाना अथवा चेतना शून्य हो जाना।
रस Question 3:
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा रस है?
सखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहें रूप रस राँची, ए बतियाँ सुनि रूखी।
(A) वीर रस
(B) वियोग श्रृंगार रस
(C) शान्त रस
(D) संयोग श्रृंगार रस
(E) वात्सल्य रस
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए।
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 3 Detailed Solution
इसका सही उत्तर " वियोग श्रृंगार रस" है।
Key Points दी गयी पंक्तियों में वियोग श्रृंगार रस है।
‘वियोग श्रृंगार रस’ अर्थात ‘जहां जहां नायक-नायिका की वियोगावस्था (विरह) का वर्णन होता है वहां वियोग श्रृंगार होता है।
यहाँ गोपियों की व्यथा का चित्रण है जिसमें वियोग रस का भाव व्यक्त हो रहा है। अतः सही विकल्प वियोग श्रृंगार रस है।
Additional Information
अन्य विकल्प
रस |
परिभाषा |
वीर रस |
जहां विषय और वर्णन में उत्साह युक्त वीरता के भाव को प्रदर्शित किया जाता है वहां वीर रस होता है। |
शांत रस |
तत्वज्ञान और वैराग्य से शांत रस की उत्पत्ति मानी गई है , इसका स्थाई भाव ‘ निर्वेद ‘ या शम है। जो अपने अनुरूप विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयुक्त होकर आस्वाद का रूप धारण करके शांत रस रूप में परिणत हो जाता है। |
संयोग श्रृंगार रस |
संयोग श्रृंगार के अंतर्गत नायक – नायिका के परस्पर मिलन प्रेमपूर्ण कार्यकलाप एवं सुखद अनुभूतियों का वर्णन होता है। |
विशेष
श्रृंगार रस ‘ रसों का राजा ‘ एवं महत्वपूर्ण प्रथम रस माना गया है। विद्वानों के मतानुसार श्रृंगार रस की उत्पत्ति ‘ श्रृंग + आर ‘ से हुई है। इसमें ‘श्रृंग’ का अर्थ है – काम की वृद्धि तथा ‘आर’ का अर्थ है प्राप्ति। अर्थात कामवासना की वृद्धि एवं प्राप्ति ही श्रृंगार है इसका स्थाई भाव ‘रति’ है। इसके दो भेद हैं – संयोग श्रृंगार रस, वियोग श्रृंगार रस |
रस Question 4:
अभिनव गुप्त के अनुसार रस के कितने प्रकार है?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 4 Detailed Solution
अभिनव गुप्त के अनुसार रस के नौ प्रकार है।
Key Pointsअभिनव गुप्त-
- जन्म-10 वीं शती
- मुख्य ग्रन्थ-
- अभिनवभारती
- तन्त्रालोक
- ध्वन्यालोक आदि।
Important Pointsरस के प्रकार हैं-
रस | स्थाई भाव |
शृंगार रस | रति |
हास्य रस | हास |
रौद्र रस | क्रोध |
वीर रस | उत्साह |
अद्भुत रस | विस्मय |
वीभत्स रस | जुगुप्सा |
शांत रस | निर्वेद |
वात्सल्य रस | वत्सलता |
Additional Informationरस-
- आचार्य भरतमुनि के अनुसार-
- विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
- रस के चार अंग हैं-
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- व्यभिचारी/संचारी भाव
रस Question 5:
निम्नलिखित में से रस के चार अवयवों में सम्मिलित नहीं है :
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 5 Detailed Solution
रस के चार अवयवों में सम्मिलित नहीं है- विषयानंद भाव
विषयानंद भाव-
- विषयों अर्थात भोग-विलास से मिलने वाला आनंद।
Key Pointsस्थायी भाव-
- मन के भीतर स्थायी रूप से रहने वाला सुषुप्त संस्कार या वासना को स्थायी भाव कहते हैं।
- स्थायी भाव अनुमूल आलम्बन तथा उद्दीपन रूप उद्बोधन सामग्री के संयोग से रस रूप में अभिव्यक्त होते हैं।
- स्थायी भाव नौ माने गए हैं-
- रति, हास, शोक, क्रोध, भय, जुगुप्सा, निर्वेद, विस्मय।
अनुभाव-
- ’अनुभावो भाव बोधक’ अर्थात् भाव का बोध कराने वाले अनुभाव होते हैं।
- आलम्बन उद्दीपन विभाव द्वारा रस को पुष्ट करने वाली शारीरिक मानसिक अथवा अनायास होने वाली चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
- अनुभाव के चार भेद हैं-
- कायिक
- वाचिक
- आंगिक
- आहार्य
संचारी भाव-
- व्यभिचारी (संचारी) भाव स्थायी भाव के साथ-साथ संचरण करते हैं, इनके द्वारा स्थायी भाव की स्थिति की पुष्टि होती है।
- संचारी भाव उसी प्रकार उठते हैं और लुप्त होते हैं जैसे जल में बुदबुदे और लहरें उठती हैं और विलीन होती रहती है।
- संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई हैं-
- निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दैन्य, चिन्ता, मोह आदि।
Important Pointsरस-
- रस काव्य का मूल आधार प्राणतत्व अथवा आत्मा है।
- आचार्य भरतमुनि-
- "विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्ति।"
- रस के चार भेद हैं-
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- व्यभिचारी(संचारी) भाव
Additional Informationविभाव-
- जो कारण हृदय में स्थित स्थायी भाव को जाग्रत तथा उद्दीप्त करें अर्थात् रसानुभूति के कारण को विभाव कहते हैं।
- विभाव के दो भेद हैं-
- आलम्बन विभाव-
- जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण स्थायी भाव जाग्रत होता है उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं।
- उद्दीपन विभाव-
- स्थायी भाव को उद्दीप्त या तीव्र करने वाले कारण उद्दीपन विभाव होते हैं।
- नायक नायिका का रूप सौन्दर्य, पात्रों की चेष्टाएँ, ऋतु, उद्यान, चाँदनी, देश-काल आदि उद्दीपन विभाव होते हैं।
Top रस MCQ Objective Questions
भरतमुनि ने रसों की संख्या कितनी मानी है?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "आठ" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- 'नाट्यशास्त्र' में भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत।
- दण्डी ने भी आठ रसों का उल्लेख किया है।
- भरतमुनि के अनुसार रस की परिभाषा, “विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।”
- उद्भट ने नौवाँ रस शांत रस को माना है।
- विश्वनाथ ने वात्सल्य को दसवाँ रस माना है।
- रूपगोस्वामी ने भक्तिरस को ग्यारहवाँ रस माना है।
- और रुद्र्ट ने प्रेयान को बारहवाँ रस माना है।
- रति के 3 भेद हैं-
- दाम्पत्य रति, वात्सल्य रति और भक्ति सम्बन्धी रति।
- इन्ही से क्रमशः श्रृंगार, वात्सल्य और भक्ति रस का निष्पत्ति हुआ है।
- रसों की संख्या सर्वमान्य 9 है-
- रस - स्थायी भाव
- शृंगार रस :- रति
- हास्य रस :- हास, हँसी
- वीर रस :- उत्साह
- करुण रस :- शोक
- शांत रस :- निर्वेद, उदासीनता
- अदभुत रस :- विस्मय, आश्चर्य
- भयानक रस :- भय
- रौद्र रस :- क्रोध
- वीभत्स रस :- जुगुप्सा
- वात्सल्य रस :- वात्सल्यता, अनुराग
- भक्ति रस :- देव रति
हिन्दी साहित्य में वात्सल्य रस को मिलाकर कुल कितने काव्य रस हैं ?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFहिन्दी साहित्य में वात्सल्य रस को मिलाकर कुल कितने काव्य रस हैं - 10
- आचार्य विश्वनाथ ने प्रस्फुट चमत्कार के कारण वत्सल रस का स्वतंत्र अस्तित्व निरूपित किया है।
- आचार्य मम्मट ने इस रस को स्वीकार नहीं किया है।
Key Points वात्सल्य रस-
- माता-पिता का अपने पुत्रादि पर जो नैसर्गिक स्नेह होता है, उसे ‘वात्सल्य’ कहते हैं।
- संचारी भाव- हर्ष, मद, मोह, उत्सुकता आदि।
- स्थायी भाव- स्नेह
- आलंबन- पुत्र, पुत्री आदि।
- उद्दीपन- आलंबन की चेष्टाएँ।
- गुण- माधुर्य।
उदाहरण-
- ‘चलत देखि जसुमति सुख पावै।
ठुमुकि ठुमुकि पग धरनी रेंगत, जननी देखि दिखावै’
Additional Information
रस | स्थायी भाव |
शृंगार | रति |
करुण | शोक |
हास्य | हास |
वीर | उत्साह |
भयानक | भय |
रौद्र | क्रोध |
अद्भुत | आश्चर्य , विस्मय |
शांत | निर्वेद या निर्वृती |
वीभत्स | जुगुप्सा |
वात्सल्य | रति |
निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस सही विकल्प का चयन करें जो बताता है कि संयोग और वियोग किस रस के रूप है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFसंयोग और वियोग शृंगार रस के रूप है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही उत्तर विकल्प 3 शृंगार होगा ।
Additional Information
रस |
||
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, |
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रस के चार अंग है- |
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वस्तुतः रस के ग्यारह भेद होते है- |
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रस |
परिभाषा |
उदाहरण |
शृंगार रस |
आचार्य भोजराज ने 'श्रृंगार' को 'रसराज' कहा है। जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति स्थायी भाव आस्वाद्य हो जाता है तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं। |
'चितवत चकित चहूँ दिसि सीता। |
वत्सल रस |
वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। |
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत। |
भयानक रस |
भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तो वहाँ भयानक रस होता है। |
एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय। |
अदभुत रस |
अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता हैं। |
अम्बर में कुन्तल जाल देख, |
रस का सम्बन्ध किस धातु से माना जाता है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDF- रस काव्य का मूल आधार ‘ प्राणतत्व ‘ अथवा ‘ आत्मा ‘ है रस का संबंध ‘ सृ ‘ धातु से माना गया है।
- जिसका अर्थ है जो बहता है , अर्थात जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसे को रस कहते हैं।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार रस शब्द ‘ रस् ‘ धातु और ‘ अच् ‘ प्रत्यय के योग से बना है।
- जिसका अर्थ है – जो वहे अथवा जो आश्वादित किया जा सकता है।
- पदार्थ की दृष्टि से रस का प्रयोग षडरस के रूप में तो, आयुर्वेद में शस्त्र आदि धातु के अर्थ में , भक्ति में ब्रह्मानंद के लिए तथा साहित्य के क्षेत्र में काव्य स्वाद या काव्य आनंद के लिए रस का प्रयोग होता है।
रस |
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। |
रस एवं स्थायी भाव की दृष्टि से कौन-सा विकल्प सही है?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर है - वीभत्स - जुगुप्सा
Key Points
- वीभत्स रस का स्थायी भाव है जुगुप्सा।
- अन्य विकल्प:-
- शांत रस - निर्वेद
- हास्य रस - हास
- श्रृंगार रस - रति।
Additional Information
रस- रस एक प्रकार का आनन्द है, काव्य पढ़ने या नाटक देखने से जो विशेष प्रकार का आनन्द प्राप्त होता है। उसे रस कहा जाता है। हिन्दी में 'स्थायी भाव' के आधार पर काव्य में नौ रस बताये गए हैं, जो इस प्रकार हैं:- |
क्रम संख्या | रस | स्थायी भाव |
1. | श्रृंगार रस | रति |
2. | हास्य रस | हास |
3. | करूण रस | शोक |
4. | रौद्र रस | क्रोध |
5. | वीर रस | उत्साह |
6. | भयानक रस | भय |
7. | वीभत्स रस | जुगुप्सा |
8. | अद्भुत रस | विस्मय |
9. | शांत रस | निर्वेद |
'क्रोध' किस रस का स्थायी भाव है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से सही उत्तर ‘रौद्र रस’ है।
Key Points
- दिए गए विकल्पों में से 'क्रोध' रौद्र रस का स्थायी भाव है।
- जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष या दूसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि की निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसे रौद्र रस कहते हैं।
- इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
Additional Information
काव्य को पढ़ने, सुनने से उत्पन्न होने वाले आनंद की अनुभूति को साहित्य के अंतर्गत रह कहा जाता है। हिंदी में ‘स्थायी भाव’ के आधार पर काव्य में ‘नौ’ रस बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:- |
||
|
रस |
स्थायी भाव |
1. |
शृंगार रस |
रति |
2. |
हास्य रस |
हास |
3. |
करुण रस |
शोक |
4. |
रौद्र रस |
क्रोध |
5. |
वीर रस |
उत्साह |
6. |
भयानक रस |
भय |
7. |
वीभत्स रस |
जुगुप्सा |
8. |
अद्भुत रस |
विस्मय |
9. |
शांत रस |
निर्वेद |
इसके अलावा 2 और रस माने जाते हैं। वे हैं-
10. |
वात्सल्य |
स्नेह |
11. |
भक्ति |
वैराग्य |
'विस्मय' किस रस का स्थायी भाव है
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 'अद्भुत' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर हैं। Key Points
- 'विस्मय' नामक स्थायी भाव 'अद्भुत' रस का है।
- जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होता है उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।
- उदाहारण -
- अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।
चकित भई गद्गद बचना, विकसित दृग पुलकातु।
Additional Information
काव्य को पढ़ने, सुनने से उत्पन्न होने वाले आनंद की अनुभूति को साहित्य के अंतर्गत रस कहा जाता है। हिंदी में ‘स्थायी भाव’ के आधार पर काव्य में ‘नौ’ रस बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:- |
||
|
रस |
स्थायी भाव |
1. |
शृंगार रस |
रति |
2. |
हास्य रस |
हास |
3. |
करुण रस |
शोक |
4. |
रौद्र रस |
क्रोध |
5. |
वीर रस |
उत्साह |
6. |
भयानक रस |
भय |
7. |
वीभत्स रस |
जुगुप्सा |
8. |
अद्भुत रस |
विस्मय |
9. |
शांत रस |
निर्वेद |
इसके अलावा 2 और रस माने जाते हैं। वे हैं-
10. |
वात्सल्य |
स्नेह |
11. |
भक्ति |
वैराग्य |
निम्नलिखित में से किसे संचारी भाव कहते हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "व्यभिचारी भाव" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- व्यभिचारी भाव को संचारी भाव कहते हैं।
- संचारी भाव
- ये चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकार हैं। ये स्थायी भावों को पुष्ट करने में सहायक होते है। इनकी स्थिति पानी के बुलबुले के समान उत्पन्न होने और समाप्त होते रहने की होती है।
- भरत मुनि ने 33 संचारी भाव माने है :-
- निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, देन्य, चिंता, मोह, स्मृति, घृति, ब्रीडा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता
- गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, वितर्क
- स्थायीभाव
- जो भाव मानव हृदय में स्थायी रूप से रहते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
- प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव रहता है।
- जैसे- श्रृंगार का रति, वीर का उत्साह
- विभाव
- स्थायी भावों को जाग्रत करने वाले कारक विभाव हैं।
- इसके दो भेद हैं–
- (अ) आलम्बन और
- (ब) उद्दीपन हैं।
- अनुभाव
- आश्रय की चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
- अनुभाव चार प्रकार के होते हैं-
- कायिक
- मानसिक
- आहार्य
- सात्विक।
अमर्ष क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 2 'एक संचारी भाव’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं।
- उपर्युक्त विकल्पों में से 'अमर्ष' संचारी भाव है।
- आचार्य भरत मुनि ने 33 संचारी भाव माने है।
- जो हैं - निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, देन्य, चिंता, मोह, स्मृति, घृति, ब्रीडा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, त्रसा, वितर्क।
- अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर हैं।
- रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'।
- काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
- स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव,आलंबन भाव और संचारीभाव से रस की वृद्धि होती है।
“रक्त मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है।
महा घोर दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा।”
उपर्युक्त पंक्तियों में इनमें से कौन सा रस है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रस Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF"रक्त मास के सड़े पंक से उमड़ रही है,महा घोर दुर्गंध रुद्ध हो उठती श्वासा।" में वीभत्स रस है।
- उपर्युक्त पंक्तियों से घृणा एवं जुगुप्सा का भाव उत्पन्न हो रहा है।
- अतः इस वजह से यहां पर वीभत्स रस है।
- वीभत्स रस का स्थायी भाव घृणा एवं जुगुप्सा है।
भावार्थ
- खून और रक्त से सने हुए कीचड़ से बहुत तीव्र दुर्गंध आ रही है जिससे श्वास तक रुद्ध हो रही है।
- रस :- वीभत्स रस
- स्थायी भाव :- जुगुप्सा
रस एवं उनके स्थायी भाव-
- शृंगार - रति
- करुण - शोक
- हास्य - हास
- वीर - उत्साह
- भयानव - भय
- रौद्र - क्रोध
- अद्भुत - आश्चर्य , विस्मय
- शांत – निर्वेद या निवृत्ति
- वीभत्स - जुगुप्सा
- वात्सल्य - रति
- भक्ति रस - अनुराग
अद्भुत रस का उदाहरण
- अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।
- चकित भई गद्गद बचना, विकसित दृग पुलकातु।।
रौद्र रस के उदाहरण
- सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु, मोरा सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा।
करुण रस के उदाहरण
- सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
- धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥