संस्कृतभाषाशिक्षणे सर्वप्रथमं भाषाकौशलं विद्यते-

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REET Level 2 Social Science - 23rd July 2022 (S2) (Hindi-English-Sanskrit)
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  1. श्रवणम्
  2. पठनम्
  3. सम्भाषणम्
  4. लेखनम्

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Option 1 : श्रवणम्
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प्रश्नानुवाद - संस्कृत भाषा शिक्षण में सर्वप्रथम भाषा कौशल है-

स्पष्टीकरण - संस्कृत भाषा शिक्षण में श्रवण कौशल प्रथम कौशल है। भाषा सीखने हेतु चार प्रमुख कौशल है - श्रवण, सम्भाषण, पठन, लेखन। इन कौशलों के विकास के क्रम में प्रथम कौशल श्रवण कौशल है। जो अन्य तीन कौशलों को सीखने के लिए आधार है। श्रवण कौशल किसी के द्वारा बोले गये वाक्यों को सुनकर अर्थ ग्रहण किया जाता है। साथ ही समझकर प्रतिक्रिया दी जाती है। 

Important Points

भाषा कौशल -

  • विचारों का सम्प्रेषण का माध्यम भाषा है। व्यक्ति भाषा के द्वारा अपनी बात को दूसरों को सुनाता है और दूसरों की बातों को सुनता है, इससे विचारों का आदान-प्रदान होता है। अतः बालकों को इसमें विचारों के आदान-प्रदान में कुशल/प्रवीण बनाना ही भाषा की श्रेष्ठता है।
  • हम विचारों की अभिव्यक्ति दो प्रकार से करते हैं। जैसे - बोलकर अथवा लिखकर।
  • इसी प्रकार विचारों का ग्रहण भी दो प्रकार से होता है। जैसे - सुनकर अथवा पढ़कर।
  • इस प्रकार भाषा के कौशल के भी चार प्रकार होते हैं - सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना। 
  • सुनने व पढ़ने में आन्तरिक मानसिक क्रिया की प्रमुखता है तथा यह क्रिया अमूर्त है, लेकिन बोलना व लिखना दो क्रियाएँ मूर्त क्रियायें हैं।

भाषा के चार कौशल निम्नलिखित है-ं

  • श्रवण कौशल - भाषा कौशल विकास का प्रारम्भ सबसे पहले श्रवण कौशल से होता है। जन्म लेने के बाद बच्चा सबसे पहले सुनने की स्थिति में ही होता है। 'श्रवण' केवल ध्वनियों का सुनना मात्र नहीं है। इसमें किसी कथन के ध्यानपूर्वक सुनने, सुनी हुई बात पर चिंतन-मनन करने तथा चिंतन के बाद उस पर अपना मंतव्य स्थिर करके तदनुसार व्यवहार करने जैसी क्रमबद्ध प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं।
  • सम्भाषण कौशल - यह कौशलों में दूसरा कौशल है। एक व्यक्ति द्वारा अपने भावों और विचारों को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु ध्वनि संकेत युक्त भाषा का प्रयोग मौखिक अभिव्यक्ति कहलाता है। जो सम्भाषण/भाषण कौशल है।
  • पठन कौशल - यह तीसरा भाषा कौशल है। लिखित सामग्री को उच्चरित करने की क्षमता वाचन कहलाती है, परन्तु पठन में उसके अर्थग्रहण पर बल दिया जाता है। अत: इसमें दो शब्दों का विशेष महत्त्व है - वाचन एवं पठन। माध्यमिक स्तर से ही पठन कौशल सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अधिकतर शिक्षण पाठ्यपुस्तकों द्वारा प्रारम्भ होता है।
  • लेखन कौशल - यह चौथा/अन्तिम भाषा कौशल है। सबसे अंत में आता है - लेखन कौशल। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि इससे सबसे अंत में ही सिखाया जाए। विद्यार्थी लिखना तो बहुत पहले से प्रारम्भ कर देते हैं, परन्तु शुद्ध लेखन कौशल में क्षमता सही अभ्यास एवं शिक्षण द्वारा ही आती है। भावों और विचारों को सुसम्बद्ध तरीके से लिखित रूप देना ही लेखन कौशल के अंतर्गत आता है। पर लिखित रचना से पूर्व उसकी मौखिक रचना का अभ्यास आवश्यक है।

 

अतः कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा शिक्षण में श्रवण कौशल प्रथम भाषा कौशल है। 

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