एक लिखत में, पक्षकारों की पारस्परिक भूल जो कि उनके वास्तविक आशय को अभिव्यक्त नहीं करती है, लिखत के किसी भी पक्षकार द्वारा परिशोधित करवाई जा सकती है;

  1. पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अन्तर्गत वाद संस्थित करके ।
  2. व्यवहार प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 152 के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत करके ।
  3. विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 26 के अन्तर्गत वाद संस्थित करके ।
  4. परिशोधित नहीं करवाई जा सकती है।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 26 के अन्तर्गत वाद संस्थित करके ।

Detailed Solution

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सही उत्तर विकल्प 3 है। Key Points 

  • विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 26 इस बात से संबंधित है कि लिखत को कब सुधारा जा सकता है।
  • (1) जब पक्षकारों की कपटपूर्ण या पारस्परिक भूल के कारण कोई संविदा या अन्य लिखित लिखत [जो किसी ऐसी कंपनी का संगम-नियम नहीं है जिस पर कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) लागू होता है] उनके वास्तविक आशय को अभिव्यक्त नहीं करती है, तब:
    • (a) कोई भी पक्ष या उसका हितधारक प्रतिनिधि लिखत को सुधारने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकेगा ; या
    • (b) वादी, किसी ऐसे वाद में जिसमें लिखत के अधीन उत्पन्न होने वाला कोई अधिकार विवाद्यक हो, अपने अभिवचन में यह दावा कर सकेगा कि लिखत को सुधारा जाए; या
    • (c) खंड (b) में निर्दिष्ट किसी वाद में प्रतिवादी, अपने समक्ष उपलब्ध किसी अन्य बचाव के अतिरिक्त, लिखत में सुधार की मांग कर सकेगा।
  • (2) यदि किसी वाद में, जिसमें किसी संविदा या अन्य लिखत को उपधारा (1) के अधीन परिशोधित करने की ईप्सा की गई है, न्यायालय पाता है कि लिखत कपट या भूल के कारण पक्षकारों के वास्तविक आशय को अभिव्यक्त नहीं करती है, तो न्यायालय स्वविवेकानुसार लिखत को इस प्रकार परिशोधित करने का निर्देश दे सकता है कि वह आशय अभिव्यक्त हो जाए, जहां तक ऐसा तीसरे पक्षकारों द्वारा सद्भावपूर्वक और मूल्य के लिए अर्जित अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किया जा सके।
  • (3) लिखित संविदा को पहले संशोधित किया जा सकेगा, और फिर यदि संशोधित किए जाने की मांग करने वाले पक्षकार ने अपनी दलील में ऐसा अनुरोध किया है और न्यायालय ठीक समझे, तो उसे विनिर्दिष्ट रूप से लागू किया जा सकेगा।
  • (4) इस धारा के अधीन किसी भी पक्षकार को किसी लिखत के परिशोधन के लिए कोई अनुतोष तब तक प्रदान नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका विनिर्दिष्ट रूप से दावा न किया गया हो:
    • परन्तु जहां किसी पक्षकार ने अपने अभिवचन में ऐसे किसी अनुतोष का दावा नहीं किया है, वहां न्यायालय कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम पर उसे ऐसे दावे को सम्मिलित करने के लिए, न्यायसंगत शर्तों पर अभिवचन को संशोधित करने की अनुज्ञा देगा।
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