भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ - Download Free PDF

Last updated on Jun 13, 2025

Latest भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ MCQ Objective Questions

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 1:

निम्नलिखित में से भोजराज की पुस्तक है :

  1. अभिनव भारती 
  2. व्यक्ति विवेक
  3. काव्य कौतुक
  4. शृंगार प्रकाश
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : शृंगार प्रकाश

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 1 Detailed Solution

श्रृंगार प्रकाश भोजराज की पुस्तक है।

Key Points

श्रृंगार प्रकाश

  • लेखक :- भोजराज
  • विधा :- टीका

यह ज्यादातर अलंकार-शास्त्र (बयानबाजी) और रस से संबंधित है।

इस महान कृति का एक बड़ा हिस्सा श्रृंगार रस को समर्पित है , जो भोज के सिद्धांत के अनुसार: "केवल एक ही रस स्वीकार्य है।

1908 में प्रलेखित छत्तीस अध्यायों से युक्त संस्कृत कविता का एक विशाल समूह है।

Additional Information

अभिनवभारती

  • अभिनवगुप्त की रचना है।
  • यह भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की टीका है।यह नाट्यशास्त्र की एकमात्र टीका है।
  • इसमें अभिनवगुप्त ने आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक में प्रतिपादित 'अभिव्यक्ति के सिद्धान्त' और कश्मीर के प्रत्यभिज्ञा दर्शन के प्रकाश में भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या की है।

व्यक्तिविवेक

  • "व्यक्तिविवेक" के निर्माता महिम भट्ट।
  • काल ईसा की 11वीं शताब्दी है।
  • इनकी उपाधि "राजानक" थी।

काव्य कौतुक

  • रचनाकार :- अभिनव भारती
  • आलंकारिक काल की रचना है।
  • इस युग से संबद्ध तीन प्रौढ़ रचनाओं का परिचय प्राप्त है - काव्य-कौतुक-विवरण, ध्वन्यालोकलोचन तथा अभिनवभारती।

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 2:

'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति किसकी रचना है?

  1. आचार्य वामन
  2. आचार्य दंडी
  3. आचार्य भामह
  4. आचार्य अभिनव गुप्त
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : आचार्य वामन

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 2 Detailed Solution

'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति रचना है- आचार्य वामन

Key Points

  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' महान संस्कृत आचार्य वामन द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • वामन 8वीं शताब्दी के संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' में वामन ने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन किया है,
  • और यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • इसमें काव्य के गुण-दोषों, अलंकारों और रसों के सिद्धांतों की चर्चा की गई है।
  • वामन का यह ग्रंथ संस्कृत काव्य में अलंकार विद्यालय का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

Additional Informationआचार्य दंडी-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) भारतीय काव्यशास्त्र और अलंकारशास्त्र के प्रमुख विद्वान रहे हैं।
  • उन्होंने अपनी रचना 'काव्यादर्श' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
  • 'काव्यादर्श' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत काव्यशास्त्र के अध्ययन में आवश्यक माना जाता है।
  • जिसने भारतीय साहित्यिक परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • इसमें काव्य की संरचना, गुण, दोष, और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण किया गया है।

आचार्य भामह-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) संस्कृत काव्यशास्त्र के एक प्रमुख विद्वान थे।
  • उन्होंने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ 'काव्यालंकार' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
  • भामह का 'काव्यालंकार' काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,
  • जो काव्य के विभिन्न घटकों, गुणों, दोषों और अलंकारों को समझने और परिभाषित करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
  • उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की।

आचार्य अभिनव गुप्त-

  • आचार्य अभिनवगुप्त (10वीं शताब्दी) कश्मीर शैवदर्शन के प्रमुख आचार्य और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के विद्वान थे।
  • उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर व्यापक रूप से चर्चा की है,
  • जिसका मुख्य स्रोत उनका ग्रंथ 'अभिनवभारती' है, जो भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' की टिप्पणी है। 
  • अभिनवगुप्त की दृष्टि में काव्य की वास्तविक प्रतिष्ठा और इसके रसपूर्ण अनुभव का महत्व सर्वोपरि है।
  • उन्होंने भाषा, भाव और रस के संयोजन पर बल दिया, जिससे काव्यशास्त्र में एक नई गहराई आई।
  • उनके विचार भारतीय काव्य और नाट्यशास्त्र के अध्ययन में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 3:

निम्नलिखित काव्यशास्त्रीय ग्रंथो को उनके उनके आचार्यो के साथ सुमेलित कीजिये-

    सूचि-I                  सूचि-II
(a) उज्जवल नील मणि (i) अप्पय दीक्षित 
(b) कुवलयानंद  (ii) विश्वनाथ 
(c) साहित्य दर्पण  (iii) रूप गोस्वामी
(d) रस गंगाधर  (iv) पंडितराज जगन्नाथ 

  1. a - i, b - ii, c - iv, d - iii
  2. a - ii, b - iii, c - iv, d - i
  3. a - iv, b - i, c - iv, d - ii
  4. a - iii, b - i, c - ii, d - iv

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : a - iii, b - i, c - ii, d - iv

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 3 Detailed Solution

सही उत्तर है- a - iii, b - i, c - ii, d - iv

Key Points

काव्यशास्त्र रचनाकार
उज्जवल नील मणि रूप गोस्वामी (1489-1564)
कुवलयानंद अप्पय दीक्षित (1550-1580)
साहित्य दर्पण विश्वनाथ(14वी शती)
रस गंगाधर पंडितराज जगन्नाथ (17 वी शती)

Additional Informationअप्पय दीक्षित की अन्य प्रमुख रचनाएँः-

  • वेदांत, शिव अद्वैत, मीमांसा, काव्य व्याकरण आदि।

काव्यशास्त्र की परिभाषाः-

  • काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान हैं।
  • यह काव्यकृतियों के विश्लेषण का आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतो की ज्ञानराशि है।
  • काव्यशास्त्र  के लिए पुराने नाम साहित्यशास्त्र तथा अलंकारशास्त्र है।

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 4:

'काव्य-प्रकाश' नामक ग्रंथ के रचनाकार कौन हैं?

  1. मम्मट
  2. भामह
  3. दंडी
  4. वामन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : मम्मट

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 4 Detailed Solution

काव्य-प्रकाश' नामक ग्रंथ के रचनाकार हैं- मम्मट

Key Points

  • "काव्य-प्रकाश" नामक ग्रंथ के रचनाकार आचार्य मम्मट (मम्मटाचार्य) हैं।
  • आचार्य मम्मट ने इस ग्रंथ की रचना 11वीं शताब्दी में की थी।
  • "काव्य-प्रकाश" संस्कृत साहित्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,
  • जिसमें काव्य के विभिन्न तत्वों (जैसे- रस, अलंकार, दोष, गुण आदि) का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
  • यह ग्रंथ भारतीय काव्य-शास्त्र के अध्ययन में एक मानक और अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

Additional Information आचार्य भामह-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) संस्कृत काव्यशास्त्र के एक प्रमुख विद्वान थे।
  • उन्होंने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ 'काव्यालंकार' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
  • भामह का 'काव्यालंकार' काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,
  • जो काव्य के विभिन्न घटकों, गुणों, दोषों और अलंकारों को समझने और परिभाषित करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
  • उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की।

आचार्य दंडी-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) भारतीय काव्यशास्त्र और अलंकारशास्त्र के प्रमुख विद्वान रहे हैं।
  • उन्होंने अपनी रचना 'काव्यादर्श' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
  • 'काव्यादर्श' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत काव्यशास्त्र के अध्ययन में आवश्यक माना जाता है।
  • जिसने भारतीय साहित्यिक परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • इसमें काव्य की संरचना, गुण, दोष, और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण किया गया है।

आचार्य वामन-

  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' महान संस्कृत आचार्य वामन द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • वामन 8वीं शताब्दी के संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' में वामन ने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन किया है,
  • और यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • इसमें काव्य के गुण-दोषों, अलंकारों और रसों के सिद्धांतों की चर्चा की गई है।
  • वामन का यह ग्रंथ संस्कृत काव्य में अलंकार विद्यालय का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 5:

'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति किसकी रचना है?

  1. आचार्य वामन
  2. आचार्य दंडी
  3. आचार्य भामह
  4. आचार्य अभिनव गुप्त

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : आचार्य वामन

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 5 Detailed Solution

'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति रचना है- आचार्य वामन

Key Points

  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' महान संस्कृत आचार्य वामन द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • वामन 8वीं शताब्दी के संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
  • 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' में वामन ने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन किया है,
  • और यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • इसमें काव्य के गुण-दोषों, अलंकारों और रसों के सिद्धांतों की चर्चा की गई है।
  • वामन का यह ग्रंथ संस्कृत काव्य में अलंकार विद्यालय का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

Additional Informationआचार्य दंडी-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) भारतीय काव्यशास्त्र और अलंकारशास्त्र के प्रमुख विद्वान रहे हैं।
  • उन्होंने अपनी रचना 'काव्यादर्श' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
  • 'काव्यादर्श' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत काव्यशास्त्र के अध्ययन में आवश्यक माना जाता है।
  • जिसने भारतीय साहित्यिक परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • इसमें काव्य की संरचना, गुण, दोष, और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण किया गया है।

आचार्य भामह-

  • यह (7वीं-8वीं शताब्दी) संस्कृत काव्यशास्त्र के एक प्रमुख विद्वान थे।
  • उन्होंने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ 'काव्यालंकार' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
  • भामह का 'काव्यालंकार' काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,
  • जो काव्य के विभिन्न घटकों, गुणों, दोषों और अलंकारों को समझने और परिभाषित करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
  • उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की।

आचार्य अभिनव गुप्त-

  • आचार्य अभिनवगुप्त (10वीं शताब्दी) कश्मीर शैवदर्शन के प्रमुख आचार्य और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के विद्वान थे।
  • उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर व्यापक रूप से चर्चा की है,
  • जिसका मुख्य स्रोत उनका ग्रंथ 'अभिनवभारती' है, जो भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' की टिप्पणी है। 
  • अभिनवगुप्त की दृष्टि में काव्य की वास्तविक प्रतिष्ठा और इसके रसपूर्ण अनुभव का महत्व सर्वोपरि है।
  • उन्होंने भाषा, भाव और रस के संयोजन पर बल दिया, जिससे काव्यशास्त्र में एक नई गहराई आई।
  • उनके विचार भारतीय काव्य और नाट्यशास्त्र के अध्ययन में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

Top भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ MCQ Objective Questions

'निर्भय-भीम-व्‍यायोग' के लेखक है

  1. धनपाल
  2. राजशेखर
  3. धर्मप्रभ सूर‍ि
  4. रामचन्‍द्र सूर‍ि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : रामचन्‍द्र सूर‍ि

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 6 Detailed Solution

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  • 'निर्भय-भीम-व्यायोग' के लेखक हैं रामचन्द्र सूरि हैं।
  • भारतीय काव्यशास्त्र से अभिप्राय मूलतः संस्कृत काव्यशास्त्र से है।

Key Points

  •  काव्य से सम्बंधित विविध पक्षों का अध्ययन करने वाले शास्त्र को 'काव्यशास्त्र' कहा जाता है।

Important Points

  • राजशेखर - काव्य मीमांसा।
  • धनपाल - भविसयत्तकहा।  

"काव्यालंकारसूत्र' ग्रन्थ के रचनाकार हैं-

  1. भामह
  2. वामन
  3. दण्डी
  4. क्षेमेन्द्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : वामन

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 7 Detailed Solution

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  • काव्यालंकार सूत्र - आचार्य वामन द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ है।

Key Points

  • सूत्रों की संख्या - 319
  • जन्म काल- 8 वीं शती
  • भाग- 05 परिच्छेद

  

  • काव्यालंकार सूत्र- वामन द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ है,
  • जबकि काव्यालंकार भामह द्वारा रचित है।

Additional Information

  • वामन (6वीं शती) - काव्यालंकार 
  • दंडी (7 वीं शती) - काव्यादर्श
  • कुंतक (10 वीं शती) - वक्रोक्ति जीवित

दण्डी के काव्यशास्त्रीय ग्रंथ का नाम है:

  1. प्रतिदर्श 
  2. काव्यशास्त्र
  3. काव्यादर्श 
  4. भाषादर्श

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : काव्यादर्श 

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 8 Detailed Solution

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दण्डी के काव्यशास्त्रीय ग्रंथ का नाम काव्यादर्श है।अतः सही उत्तर काव्यादर्श होगा ।

Additional Information

प्रतिदर्श 

सम्पूर्ण से लिया गया छोटा अंश जिसमें सम्पूर्ण के गुण व लक्षण विद्यमान होते हैं। 

काव्यशास्त्र

'काव्यशास्त्र' काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धान्तों की ज्ञानराशि है।

भाषादर्श

भाषादर्शन का सम्बन्ध इन चार केन्द्रीय समस्याओं से है- अर्थ की प्रकृति, भाषा प्रयोग, भाषा संज्ञान, तथा भाषा और वास्तविकता के बीच सम्बन्ध।

निम्नलिखित ग्रंथों को कालानुक्रम में व्यवस्थित कीजिये : 

(A) काव्यादर्श 

(B) औचित्य विचारचर्चा

(C) काव्यालंकार सूत्रवृत्ति

(D) अभिनव भारती

नीचे दिये गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन चुनिये -

  1. (A), (B),(C), (D)
  2. (A), (C), (D), (B)
  3. (C), (A), (B), (D)
  4. (D), (B), (A), (C)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : (A), (C), (D), (B)

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 9 Detailed Solution

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विकल्प 2 (A,C,D,B) सही है।

Key Points

काव्यादर्श (6ठी से 7वी शताब्दी) दंडी

काव्य अलंकार सूत्रवृत्ती (8वी - 9वी शताब्दी) :- वामन

अभिनव भारती (9वी- 10वी शताब्दी) :- अभिनव गुप्त

औचित्य-विचार-चर्चा (10वी शताब्दी) :- क्षेमेन्द्र

Additional Information

काव्यादर्श के प्रथम परिच्छेद में काव्य के तीन भेद किए गए हैं– (१) गद्य, (२) पद्य तथा (३) मिश्र।।

गद्य पुन: 'आख्यायिका' और 'कथा' शीर्षक दो उपभेदों में विभाजित है।

औचित्य-विचार-चर्चा में क्षेमेन्द्र ने औचित्य को काव्य का मूलभूत तत्त्व माना है तथा उसकी प्रकृष्ट व्यापकता काव्य प्रत्येक अंग में दिखलाई है।

अभिनवभारती, भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की टीका है। वस्तुत: नाट्यशास्त्र की यह एकमात्र पुरानी टीका है।   

Important Points

क्षेमेन्द्र

  • बोधिसत्त्वावदानकल्पलता में बुद्ध के पूर्व जन्मों से संबद्ध पारमितासूची आख्यानों का पद्यबद्ध वर्णन है।
  • दशावतारचरित इनका उदात्त महाकाव्य है जिसमें भगवान विष्णु से दसों अवतारों का बड़ा ही रमणीय तथा प्रांजल, सरस एवं मुंजुल काव्यात्मक वर्णन किया गया है। 
  • वात्स्यायनसूत्रसार नामक एक कामशास्त्र की भी इन्होने रचना की।

आचार्य वामन

  • (8वीं शताब्दी का उत्तरार्ध - 9वीं शताब्दी का पूर्वार्ध) प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री थे।
  • उनके द्वारा प्रतिपादित काव्यलक्षण को रीति-सिद्धान्त कहते हैं।
  • वामन द्वारा रचित काव्यालङ्कारसूत्र, काव्यशास्त्र का दर्शन निर्माण का प्रथम प्रयास है। यह ग्रन्थ सूत्र रूप में है। वे रीति को काव्य की आत्मा कहते हैं।

निम्नलिखित में से भोजराज की पुस्तक है :

  1. अभिनव भारती 
  2. व्यक्ति विवेक
  3. काव्य कौतुक
  4. शृंगार प्रकाश

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : शृंगार प्रकाश

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 10 Detailed Solution

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श्रृंगार प्रकाश भोजराज की पुस्तक है।

Key Points

श्रृंगार प्रकाश

  • लेखक :- भोजराज
  • विधा :- टीका

यह ज्यादातर अलंकार-शास्त्र (बयानबाजी) और रस से संबंधित है।

इस महान कृति का एक बड़ा हिस्सा श्रृंगार रस को समर्पित है , जो भोज के सिद्धांत के अनुसार: "केवल एक ही रस स्वीकार्य है।

1908 में प्रलेखित छत्तीस अध्यायों से युक्त संस्कृत कविता का एक विशाल समूह है।

Additional Information

अभिनवभारती

  • अभिनवगुप्त की रचना है।
  • यह भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की टीका है।यह नाट्यशास्त्र की एकमात्र टीका है।
  • इसमें अभिनवगुप्त ने आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक में प्रतिपादित 'अभिव्यक्ति के सिद्धान्त' और कश्मीर के प्रत्यभिज्ञा दर्शन के प्रकाश में भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या की है।

व्यक्तिविवेक

  • "व्यक्तिविवेक" के निर्माता महिम भट्ट।
  • काल ईसा की 11वीं शताब्दी है।
  • इनकी उपाधि "राजानक" थी।

काव्य कौतुक

  • रचनाकार :- अभिनव भारती
  • आलंकारिक काल की रचना है।
  • इस युग से संबद्ध तीन प्रौढ़ रचनाओं का परिचय प्राप्त है - काव्य-कौतुक-विवरण, ध्वन्यालोकलोचन तथा अभिनवभारती।

नाटक को पंचम वेद मानने वाले हैं:

  1. भरत मुनि
  2. आनंद वर्धन
  3. बाबू गुलाब राय
  4. डॉ. नगेंद्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : भरत मुनि

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 11 Detailed Solution

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  • नाटक को पंचम वेद भरत  मुनि ने माना है ।
  • नाटक , काव्य का एक महत्वपूर्ण रूप है ।
  • भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र नामक ग्रन्थ की रचना की ।

Key Points

  • भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में नाटक को नाट्यवेद और पंचमवेद भी कहा है ।
  • भरतमुनि के समय में ही नाटक के मंचन तथा अन्य महत्वपूर्ण पक्षों का विकास हो चुका था ।

  

  • नाटक के सन्दर्भ में भरतमुनि का कहना है कि - " न ऐसा कोई ज्ञान है , न शिल्प है , न विद्या है , न ऐसी कोई कला है , न कोई योग है न कोई कार्य ही है जो इस नाट्य में प्रदर्शित न किया जाता हो ।"

'काव्य - प्रकाश' नामक ग्रंथ के रचनाकार कौन हैं?

  1. मम्मट
  2. भामह
  3. दण्डी
  4. वामन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : मम्मट

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 12 Detailed Solution

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'काव्य - प्रकाश' नामक ग्रंथ के रचनाकार मम्मट हैं

Key Pointsमम्मट-

  • जन्म-11वीं शती
  • मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में जाने जाते हैं।
  • वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण अधिक प्रसिद्ध हुए।

Important Pointsआचार्य वामन-

  • प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री थे।
  • इनके द्वारा प्रतिपादित काव्यलक्षण को रीति-सिद्धान्त कहते हैं। 
  • काव्यालङ्कारसूत्र आचार्य वामन द्वारा रचित एकमात्र ग्रंथ है।
    • यह सूत्र शैली में लिखा गया है।
    • इसमें पाँच अधिकरण हैं।
    • प्रत्येक अधिकरण अध्यायों में विभक्त है।
    • इस ग्रंथ में कुल बारह अध्याय हैं।

प्रसिद्ध उक्ति-

  • उक्ति-'काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मः गुणाः I' 
  • अर्थ-शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है|

आचार्य भामह-

  • भारतीय काव्यशास्त्र के महत्तवपूर्ण आचार्य रहे है|
  • इन्हें अलंकार संप्रदाय का जनक कहते हैं।
  • काव्यशास्त्र पर काव्यालंकार नामक ग्रंथ उपलब्ध है।
  • परिभाषा-"शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्"|

दण्डी-

  • समय-7 वीं शती
  • मुख्य ग्रन्थ-काव्यादर्श
  • आचार्य दण्डी ने नैसर्गिक प्रतिभा, निर्मल शास्त्र ज्ञान तथा सुदृढ़ अभ्यास को काव्य सृजन का हेतु माना है-
    • 'नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्।
      अमन्दाश्चाभि योगोऽस्याः कारणं काव्य संपदः।।'

सूची I का सूची II से मिलान कीजिए

सूची I आचार्य

सूची II पुस्तक

A.

भानुदत्त

I.

भाव प्रकाशन

B.

रामचन्द्र गुणचन्द्र

II.

व्यक्ति विवेक

C.

शारदातनय

III.

नाट्यदर्पण

D.

महिमभट्ट 

IV.

रस मंजरी

 

 

 

 

 


निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:

  1. A - II, B - IV, C - I, D - III 
  2. A - IV, B - III, C - I, D - II 
  3. A - III, B - IV. C - I. D - II 
  4. A - II, B - III, C - I, D - IV

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : A - IV, B - III, C - I, D - II 

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 13 Detailed Solution

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सूची l का सूची ll से सही मिलान है - 2) A - IV, B - III, C - I, D - II 

 Key Points

सूची I आचार्य

सूची II पुस्तक

A.

भानुदत्त

IV.

रस मंजरी

B.

रामचन्द्र गुणचन्द्र

III.

नाट्यदर्पण

C.

शारदातनय

I.

भाव प्रकाशन

D.

महिमभट्ट 

II.

व्यक्ति विवेक

 

 

 

 

 

 

 Important Points

  • भानु दत्त की रसमंजरी
    • यह श्रृंगार रस से संबंधित ग्रंथ है।
    • यह काव्य रस से संबंधित ग्रंथ है।
    • इसके अनुसार रस विहीन काव्य रसिक सह्रदयों   को प्रभावित नहीं कर सकता इसलिए काव्य जगत में रस की महत्ता सार्वजनिन है।
    • इसका प्रकाशन गंगानाथ झा केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ से हुआ है इसमें 122 पृष्ठ है
  • रामचंद्र गुणचंद्र का नाट्य दर्पण
    • नाट्यदर्पण नाट्य शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ है।
    • रामचंद्र और गुणचंद्र आचार्य हेमचंद्र के शिष्य थे।
    • आचार्य गुणचंद्र का नाटक दर्पण के अलावा कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है।
    • नाटक दर्पण की रचनाकार करिका शैली में की गई है।
    • नाटक दर्पण की वृत्ति भी इन दोनों आचार्यों ने ही लिखी है।
    • नाटक दर्पण चार 'विवेको'  में विभक्त है।
    • इसमें नाटक, प्रकरण आदि रूपक,रस,अभिनव एवं रूपक से संबंधित अन्य विषयों का भी निरूपण किया गया।
  • शारदातनय का भाव प्रकाशन
    • शारदातनय नाटयशास्त्र के आचार्य है।
    • 'भाव प्रकाशन' संस्कृत में रचित ग्रंथ है।
    • इस ग्रंथ में कुल दस अधिकार (अध्याय) है।
    • जिसमें क्रमशः भाव, रसस्वरूप, रसभेद, नायक - नायिका निरूपण,नायिका भेद, शब्दार्थ संबंध, नाट्य इतिहास, दशरूपक,नृत्यभेद, एवं नाट्य प्रयोगों का प्रतिपादन किया गया है।
    • इस ग्रंथ में भोज के 'श्रृंगार प्रकाश 'तथा आचार्य मम्मट द्वारा रचित 'काव्य प्रकाश' से अनेक उदाहरण मिलते हैं।
  • महिमभट्ट का व्यक्ति विवेक
    • महिमभट्ट का समय 11वीं शती का मध्य भाग स्वीकार किया जाता है।
    • महिमभट्ट ने ध्वनिमत के खंडन के लिए 'व्यक्ति विवेक' नामक ग्रंथ की रचना की।
    • व्यक्ति विवेक तीन (विमर्श) अध्यायों में विभक्त है।

 Additional Information

  • भानु दत्त
    • इनका अन्य ग्रंथ 'रस तरंगिणी' है।
    • भानु दत्त की रसमंजरी की रचना धनंजय के दशरूपक के आधार पर की गई है।
    • रसमंजरी में विभाव के 2 भेदों में आलंबन और उद्दीपन में और श्रृंगार रस के आलंबन विभाव नायक का और नायिका भेद पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
  • रामचंद्र के ने कुल लगभग 190 ग्रंथों की रचना की।
    • इनके द्वारा रचित 11 नाटकों के उद्धरण 'नाटक दर्पण' में देखने को मिलते है
  • शारदातनया के अन्य ग्रंथ
    • 'रसार्णवसुधाकर' है इस ग्रन्थ में तीन उल्लास है।
    • इन्होंने अचार्य शार्ग देव द्वारा रचित संगीत रत्नाकर और संगीत सुधाकर नामक टीका भी लिखी है।
  • महिम भट्ट
    • ध्वनि सिद्धांत के प्रबल विरोधी थे।
    • नहीं बट कश्मीर के निवासी थे उनके पिता का नाम श्री धैर्य तथा गुरु का नाम श्यामलाल था।

रचनाकाल की दृष्टि से निम्नलिखित रचनाओं का सही अनुक्रम क्या है?

  1. काव्यालंकार, नाट्यशास्र, ध्वन्यालोक, साहित्य दर्पण
  2. ध्वन्यालोक, नाट्यशास्त्र, काव्यालंकार, साहित्य दर्पण
  3. नाटयशास्र, ध्वन्यालोक, साहित्य दर्पण, काव्यालंकार
  4. नाटयशास्र, काव्यालंकार, ध्वन्यालोक, साहित्य दर्पण

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : नाटयशास्र, काव्यालंकार, ध्वन्यालोक, साहित्य दर्पण

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 14 Detailed Solution

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रचनाकाल की दृष्टि से निम्नलिखित रचनाओं का सही अनुक्रम-4) नाटयशास्र,काव्यालंकार,ध्वन्यालोक,साहित्य दर्पण है।

Key Points

रचना

रचनाकार

प्रकाशन वर्ष

नाटयशास्र

भरतमुनि

दूसरी शती

काव्यालंकार

भामह

छठी शती

ध्वन्यालोक

आनंदवर्धन  

नवमी शती

साहित्य दर्पण

विश्वनाथ  

चौदह्वी शती  

निम्नलिखित में से किस विद्वान ने बीसवीं सदी में भारतीय काव्यशास्त्र संबंधी कोई पुस्तक नहीं लिखी ?

  1. राममूर्ति त्रिपाठी
  2. भोलाशंकर व्यास
  3. रामचन्द्र शुक्ल 
  4. रामविलास शर्मा

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : रामविलास शर्मा

भारतीय आचार्यो के ग्रन्थ Question 15 Detailed Solution

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निम्नलिखित में से रामविलास शर्मा ने बीसवीं सदी में भारतीय काव्यशास्त्र संबंधी कोई पुस्तक नहीं लिखी।

 Key Points

  • बीसवीं सदी में भारतीय काव्यशास्त्र से संबंधित पुस्तकें लिखने वाले –
    • राममूर्ति त्रिपाठी
    • भोला शंकर व्यास
    • रामचंद्र शुक्ल

 Important Points

  • राममूर्ति त्रिपाठी –
  • इनकी प्रमुख कृतियां –
    • व्यंजना और नवीन कविता
    • भारतीय साहित्य दर्शन
    • औचित्य विमर्श,
    • रस विमर्श
    •  साहित्य शास्त्र के प्रमुख पक्ष
    • रहस्यवाद
    •  काव्यालंकार सार संग्रह और लघु वृत्ति की (भूमिका सहित ) विस्तृत व्याख्या
    •  हिंदी साहित्य का इतिहास
    • कामायनी काव्य कला और दर्शन
    •  आधुनिक कला और दर्शन, 
  • भोला शंकर व्यास की रचनाएं –
    • ध्वनि संप्रदाय 1956
    • भारतीय साहित्य शास्त्र तथा काव्यालंकार 1965
    •  समुंद्र संगम ( पंडित जगन्नाथ के जीवन पर आधारित सांस्कृतिक उपन्यास )
    •  संस्कृत का भाषाशास्त्रीय अध्याय 1957
    •  प्राकृत पैंगलम भाग 1, 2 1959
    •  भारतीय साहित्य की रूपरेखा 1965
    •  हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास खंड 1.
  • रामचंद्र शुक्ल की रचनाएं –
  • निबंध-
    • चिंतामणि भाग 1 और 2
    • विचार वीथी
  • इतिहास –
    • हिंदी साहित्य का इतिहास 1929
  • आलोचना-
    • सूरदास
    •  रस मीमांसा
    •  त्रिवेणी
  • संपादन –
    • जायसी ग्रंथावली
    •  तुलसी ग्रंथावली
    • भ्रमरगीत सार
    •  हिंदी शब्द सागर काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, 

 Additional Information

  • रामविलास शर्मा –
    • प्रेमचंद 1941
    • भारतेंदु युग 1946
    • निराला 1946
    •  प्रगति और परंपरा 1949
    •  साहित्य और संस्कृति 1949
    • प्रेमचंद और उनका युग 1952
    •  प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं
    • आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना और समाज 1961
    • निराला की साहित्य साधना 3 भाग (1969, 1972,  1976),
    • भारतेंदु युग और हिंदी साहित्य की विकास परंपरा 1975,
    • महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण 1977
    • भारतीय सौंदर्य बोध और तुलसीदास 2001.
  • निराला की साहित्य साधना पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
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