भारतीय आचार्यो के सिद्धांत MCQ Quiz in मल्याळम - Objective Question with Answer for भारतीय आचार्यो के सिद्धांत - സൗജന്യ PDF ഡൗൺലോഡ് ചെയ്യുക
Last updated on Apr 4, 2025
Latest भारतीय आचार्यो के सिद्धांत MCQ Objective Questions
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भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 1:
सत्य कथन हैं:
A. भरत ने 'नाट्यशास्त्र' के 16 वें अध्याय में अलंकारों का निरूपण किया है।
B. उद्भट, जयदेव और प्रतिहारेन्दुराज अलंकार सम्प्रदाय के आचार्य हैं।
C. 'काव्यादर्श' के दूसरे और तीसरे परिच्छेदों में अलंकार - निरूपण है।
D. 'काव्यालंकार' में 6 परिच्छेद हैं।
E. 'काव्यालंकार' - सार संग्रह' रुद्रट का ग्रन्थ है।
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 1 Detailed Solution
सत्य कथन है- केवल A, B और C
A.भरत ने 'नाट्यशास्त्र' के 16 वें अध्याय में अलंकारों का निरूपण किया है।
B. उद्भट, जयदेव और प्रतिहारेन्दुराज अलंकार सम्प्रदाय के आचार्य हैं।
C. 'काव्यादर्श' के दूसरे और तीसरे परिच्छेदों में अलंकार - निरूपण है।
Key Points
- भरतमुनि -
- संस्कृत काव्यशास्त्र के इतिहास में सबसे प्राचीन आचार्य है।
- इनका 'नाट्य शास्त्र' काव्यशास्त्र का सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रंथ है।
- उदभट –
- अलंकार से संबंधित आचार्य है इनका समय आठवीं सदी उत्तरार्ध है
- 'काव्य अलंकार सार संग्रह' ग्रंथ है
- जयदेव –
- जयदेव ने 'चंद्रालोक' नामक अलंकार शास्त्र की रचना की
- दंडी –
- अलंकार संप्रदाय से संबंधित है और 'काव्यदर्श' नामक ग्रंथ की रचना की
- 'काव्य अलंकार 'नामक ग्रंथ के रचयिता भामह है।
Important Points
- आचार्य भारत -
- ने ‘नाट्य शास्त्र’ को पंचम वेद भी कहा है।
- नाट्य शास्त्र में श्लोक 36 अध्याय तथा लगभग 5000 है।
- भरतमुनि ने 'नाट्य शास्त्र' में 10 गुण,10 दोष तथा चार अलंकार (यमक,उपमा, रूपक तथा दीपक) की मीमांसा की है।
- उदभट –
- काव्य अलंकार सार संग्रह' ग्रंथ में अलंकारों का आलोचनात्मक एवं वैज्ञानिक ढंग से विवेचन किया है।
- जयदेव - को साहित्य के क्षेत्र में 'पियूष वर्ष' तथा न्याय के क्षेत्र में 'पक्षधर' की उपाधि से प्रख्यात थे।
- इनके चंद्रलोक नमक अलंकार शास्त्र की रचना 10 मयूखो तथा 35 अनुस्टूप श्लोको में की है
- दंडी - के 'काव्यादर्श' में चार परिच्छेद तथा लगभग 650 श्लोक है।
- इन के काव्यदर्श का द्वितीय परिच्छेद अर्थालंकार का निरूपण करता है।
- तृतीय परिच्छेद शब्दालंकार का निरूपण करता है इसमें विशेषता है यमक का
Additional Information
- भामह में 'काव्य अलंकार' नामक ग्रंथ की रचना की जो 6 परिच्छेद में विभक्त है।
- इसका द्वितीय एवं तृतीय परिच्छेद अलंकार निरूपण से संबंधित है।
- 'काव्यालंकार सार - संग्रह' उदभट का ग्रंथ है।
- रूद्रट - की रचना का नाम 'काव्यलंकार' है।
- इस ग्रंथ में 16 अध्याय तथा कुल 734 श्लोक है।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 2:
मूल धातु से संबंधित वक्रता को कहा जाता है -
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 2 Detailed Solution
मूल धातु से संबंधित वक्रता को कहा जाता है- पद - पूर्वार्ध वक्रता
Key Points
पद पूर्वार्ध वक्रता-
- पद अनेक वर्णों के समुदाय को कहते हैं।
- पद के दो अंग है -प्रकृति तथा प्रत्यय।
- कुंतक प्रकृति को पद पूर्वार्ध था प्रत्यय को पद परार्ध की संज्ञा देते हैं।
Important Points
वक्रोक्ति सम्प्रदाय-
- प्रवर्तक-आचार्य कुंतक
- इनके अनुसार वक्रोक्ति काव्य की आत्मा है।
- वक्रोक्ति के 6 भेद हैं-
- वर्णविन्यास वक्रता
- पद पूर्वार्द्ध वक्रता
- पदपरार्ध वक्रता
- वाक्य वक्रता
- प्रकरण वक्रता
- प्रबंध वक्रता
Additional Information
वर्ण विन्यास वक्रता-
- कुंतक के अनुसार जिसमे एक या दो या बहुत से वर्ण थोड़े थोड़े अंतर पर ग्रथित होते हैं वह वर्ण विन्यास वक्रता अर्थात वर्ण रचना की वक्रता कही जाती है।
पद - परार्ध वक्रता-
- पद के परार्ध अर्थात् प्रत्यय से उत्पन्न वक्रता।
- उदाहरण-
- "पिय सो कहहु संदेसड़ा है भौरा, है काग" - जायसी
- इसके छः भेद हैं-
- काल वक्रता
- कारक वक्रता
- संख्या वक्रता
- पुरुष वक्रता
- प्रत्यय वक्रता
- उपग्रह वक्रता
वाक्य वक्रता-
- वाक्य के प्रयोग कौशल के कारण वक्रता।
- इसे वाच्य वक्रता और वस्तु वक्रता भी कहते हैं।
- इसके दो भेद हैं-
- सहजा वस्तुवक्रता
- अर्थालंकारों के प्रयोग से जन्य वक्रता
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 3:
भामह ने समस्त अलंकारों का मूल किस अलंकार को माना है?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 3 Detailed Solution
भामह ने समस्त अलंकारों का मूल वक्रोक्ति अलंकार को माना है।
Key Pointsवक्रोक्ति अलंकार-
- जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे, उसे वक्रोक्ति कहते हैं।
- वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद हैं-
- श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
- काकु वक्रोक्ति अलंकार
- उदाहरण-
- एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?
कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया सपर है॥ - यहाँ जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिये "अपर" (दूसरा) उपयोग किया है जबकि उत्तर में नूरजहाँ ने 'अपर' का अर्थ 'अ-पर' अर्थात 'बिना पंख वाला' किया है।
- एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?
Important Pointsउपमा अलंकार-
- जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण,आकृति,स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए,तब वहां उपमा अलंकर होता है।
- उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ की जाती है।
- उदाहरण-
- हरि पद कोमल कमल।
- उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है।
रूपक अलंकार-
- जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए, तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
- रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है।
- उदाहरण-
- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
- उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है।
- ‘राम रतन’- उपमेय पर ‘धन’- उपमान का आरोप है।
यमक अलंकार-
- जब एक शब्द प्रयोग दो बार होता है और दोनों बार उसके अर्थ अलग-अलग होते हैं तब यमक अलंकार होता है।
- उदाहरण-
- ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 4:
'काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतर क्षतये ।....' - काव्य प्रयोजन विषयक उपर्युक्त कथन किस आचार्य का है ?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 4 Detailed Solution
'काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतर क्षतये ।....' - काव्य प्रयोजन विषयक यह कथन आचार्य मम्मट का है।
अर्थ-
- यश प्राप्ति,अर्थ प्राप्ति,व्यवहार ज्ञान,शिवेतर नाश,परमानन्द की प्राप्ति और कान्ता सम्मित उपदेश को काव्य का प्रयोजन माना है।
Key Pointsआचार्य व उनके ग्रंथ-
आचार्य | समय | ग्रंथ |
भामह | छठी शती | काव्यालंकार |
दंडी | 7 वीं शती | काव्यादर्श |
मम्मट | 11 वीं शती | काव्य प्रकाश |
विश्वनाथ | 14 वीं शती | साहित्य दर्पण |
Important Pointsआचार्यों द्वारा काव्य प्रयोजन-
आचार्य | काव्य-प्रयोजन |
दंडी | लोक व्युत्पत्ति |
भामह | चतुर्वर्ग,कीर्ति,प्रीति,सकल कला ज्ञान |
विश्वनाथ | चतुवर्ग फल प्राप्ति (धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष) |
Additional Informationअन्य आचार्यों द्वारा दिए गए काव्य प्रयोजन-
भरतमुनि-
- धर्म,अर्थ,आयु-साधक,हितकर,बुद्धि-वर्धक और लोक उपदेश को काव्य प्रयोजन माना है।
आचार्य वामन-
- कीर्ति और प्रीति को काव्य प्रयोजन माना है।
आचार्य कुंतक-
- पुरुषार्थ चतुष्टय,व्यवहार ज्ञान व परमानन्द को काव्य प्रयोजन माना है।
आचार्य भोजराज-
- कीर्ति और प्रीति को काव्य प्रयोजन माना है।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 5:
निम्न में से कौन किसके लिए प्रसिद्ध नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 5 Detailed Solution
"क्षेमेंद्र" वक्रोक्ति के लिए प्रसिद्ध नहीं है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (4) वक्रोक्ति के लिए क्षेमेंद्र सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
Key Points
- क्षेमेन्द्र संस्कृत में परिहासकथा (सटायर) के लिए प्रसिद्ध हैं।
- क्षेमेन्द्र (जन्म लगभग 1025-1066) संस्कृत के प्रतिभासंपन्न काश्मीरी महाकवि थे।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 6:
निम्नलिखित में से किस आचार्य ने रसों की संख्या आठ मानी है -
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 6 Detailed Solution
आचार्य-1) दंडी ने रसों की संख्या आठ मानी है।
Important Points
- संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।
- कुछ विद्वान इन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के प्रारम्भ का मानते हैं तो कुछ विद्वान इनका जन्म 550 और 650 ई० के मध्य मानते हैं।
- दंडी का 'काव्यादर्श' अधिक प्रौढ़,अधिक व्यापक और अधिक व्यवस्थित है।
- दण्डी के अनुसार रस की परिभाषा- वाक्यस्य, ग्राम्यता योनिर्माधुर्ये दर्शतो रस:।
Additional Information
- धनंजय कृत दशरूप और उस पर धनिककृत अवलोक नाट्यालोचन पर सर्वमान्य ग्रंथ है।
- रुद्रट ने विभिन्न काव्यदोषों की गुणत्वापत्ति की चर्चा की है।
- अभिनव गुप्त के अनुसार रसों की संख्या नौं है।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 7:
निम्न में से कौनसा आचार्य अलंकार सम्प्रदाय से संबद्ध नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 7 Detailed Solution
'धनञ्जय' का अलंकार संप्रदाय से सम्बन्ध नही हैं।
Key Pointsधनञ्जय-(10वीं शती)
- इनका प्रमुख ग्रन्थ दशरूपक है।
- संस्कृत के विद्वान साहित्यकार।
Additional Information
आचार्य दण्डी-(7 वीं शती)
- इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ काव्यादर्श है।
- संस्कृत भाषा के साहित्यकार थे।
- इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध है- काव्यदर्श,दशकुमार चरित्,अवंतिसुन्दरी कथा हैं।
भामह-(6वीं शती)
- आचार्य भामह संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध आचार्य इन्हें अलंकार संप्रदाय का जनक कहते हैं।
- " "शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य परिभाषा है।
- काव्यालंकार इनका प्रमुख ग्रन्थ है।
केशव मिश्र-(1885-1952)
- हिन्दी के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे।
- 'विनयपत्रिका' की अत्यधिक प्रशंसा करने के कारण पण्डित मदन मोहन मालवीय ने इन्हें सन 1928 ई. में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में अध्यापक नियुक्त क्र दिया।
प्रमुख रचनाएँ-
- हिन्दी वैधुत शब्दावली
- हरिवंशगुण स्मृति
- गद्य भारती
- काव्यलोक
- पदचि आदि।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 8:
'प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता' किसकी उक्ति है ?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 8 Detailed Solution
उपर्युक्त प्रश्न में श्री भट्टतौत सही विकल्प है।
Key Points
- " प्रज्ञा नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा मता।" अर्थात, "प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम है जो नित्य नवीन रासानुकूल विचार उत्पन्न करती है ।"
-
प्रतिभा वह शक्ति है, जो किसी व्यक्ति को काव्य की रचना में समर्थ बनाती है।
-
काव्य हेतु में प्रतिभा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है।
-
प्रतिभा के महत्व के बारे में भट्टतौत जी कहते हैं कि-
" प्रज्ञा नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा मता।"
Additional Information
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 9:
"सौन्दर्यमलंकारः" उक्ति किस आचार्य की है?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 9 Detailed Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "वामन" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।
- "काव्यं ग्राह्ममलंकारात्। सौन्दर्यमलंकार:" - वामन
- व्यापक रूप में सौंदर्य मात्र को अलंकार कहते हैं और उसी से काव्य ग्रहण किया जाता है।
- चारुत्व को भी अलंकार कहते हैं। (टीका, व्यक्तिविवेक)।
- वामन
- संस्कृत काव्य परंपरा में 'रीति' सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य वामन माने जाते हैं।
- रीति के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि,
- 'रीतिरात्मा काव्यस्य ; विशिष्टापदरचना रीति: ।'
- वामन ने ही सर्वप्रथम गुण और अलंकार में भेद स्पष्ट किया।
- उनके अनुसार काव्य का नित्य धर्म माधुर्य, प्रसाद और ओज आदि गुण ही हैं तथा इन्हीं गुणों पर आधृत रीतियाँ ही काव्य की अंतरात्मा हैं।
- भामह के विचार से वक्रार्थविजा एक शब्दोक्ति अथवा शब्दार्थवैचित्र्य का नाम अलंकार है। (वक्राभिधेतशब्दोक्तिरिष्टा वाचामलं-कृति:।)
- रुद्रट अभिधानप्रकारविशेष को ही अलंकार कहते हैं। (अभिधानप्रकाशविशेषा एव चालंकारा:)।
- दंडी के लिए अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म हैं (काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते)।
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 10:
आनंद वर्धन ने किस तत्व को काव्य का प्राण तत्व माना है?
Answer (Detailed Solution Below)
भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 10 Detailed Solution
सही उत्तर है - ध्वनि।
Key Points
ध्वनि-
- प्रवर्तक - आनंदवर्धन
- इन्होंने ध्वनि को काव्य की आत्मा कहा है।
- 'ध्वनिरात्मा काव्यस्य'
- जब वाणी में वाच्यार्थ और वाचक शब्द अपने अस्तित्व को गौण बनाकर अपने से अलग एवं अधिक चमत्कारयुक्त अर्थ को व्यक्त करते हैं तब वह अर्थ 'ध्वनि' कहलाता है।