NCF 2005 अनुसारं काल्पनिक-चिन्तनार्थम् एवं च साक्षरताद्वारा ज्ञानार्जनं मन्यते?

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CTET Nov 2012 Paper - 2 Maths & Science (L - I/II: Hindi/English/Sanskrit)
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  1. शास्त्रियभाषा
  2. द्वितीयभाषा
  3. मातृभाषा
  4. तृतीयभाषा

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Option 3 : मातृभाषा
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प्रश्न अनुवाद - NCF(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा) 2005 के अनुसार काल्पनिक चिंतन के लिये एवं साक्षरता द्वारा ज्ञानार्जन किसको माना जाता है?

स्पष्टीकरण - NCF(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा) 2005 के अनुसार काल्पनिक चिंतन के लिये एवं साक्षरता द्वारा ज्ञानार्जन मातृभाषा को माना जाता है। 

Important Points

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-2005) - 

  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-2005) के अनुसार बच्चे की घर की भाषा अथवा मातृभाषा ही विद्यालय में अधिगम का माध्यम होना चाहिए, क्योंकि बच्चे घर–परिवार एवं परिवेश से जिन अनुभवों को लेकर विद्यालय आते हैं, वे बहुत समृद्ध होते हैं। उनकी इस भाषायी पूँजी का इस्तेमाल भाषा सीखने–सिखाने के लिए किया जाना चाहिए। पहली बार विद्यालय में आने वाला बच्चा अपने शब्दों के अर्थ और उनके प्रभाव से परिचित होता है, अतः विद्यालय में उनके लिए स्वाभाविक वातावरण का निर्माण होने से उनके सीखने के गुण और मात्रा में विकास होता है।

Hint

मातृभाषा का महत्त्व -

  • मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उद्गम होती है। एक कुशल संप्रेषक अपनी मातृभाषा के प्रति उतना ही संवेदनशील होगा जितना विषय-वस्तु के प्रति। मातृभाषा व्यक्ति के संस्कारों की परिचायक है। मातृभाषा से इतर राष्ट्र के संस्कृति की संकल्पना अपूर्ण है। मातृभाषा मानव की चेतना के साथ-साथ लोकचेतना और मानवता के विकास का भी अभिलेखागार होती है। 

ज्ञानार्जन का प्रमुख साधन -

  • मानव श्रवण एवं पाठन क्रियाओं के माध्यम से देश-विदेश की सभी तरह की जानकारी प्राप्त करता है शब्द -भंडार के माध्यम से उसकी शैशवावस्था में उसके पास धीरे-धीरे बढ़ता है। शब्द -भंडार के माध्यम से वह किसी विचार को सुनता है या किसी रचना को पढता है तो उस विचार को वह अनायास ही पूरी तरह ग्रहण कर लेता है और ये विचार उसके मस्तिष्क में एकत्रित होते हुए उसके ज्ञान में वृद्धि करते हैं वास्तव में, मातृभाषा ही बालक के ज्ञान वृद्धि का प्रमुख साधन है

विचार -विनिमय का प्रमुख साधन -

  •  जिस स्वभाविकता  एवं सहजता से हम मातृभाषा में विचारों का आदान -प्रदान करते हैं, उतना किसी अन्य भाषा का अटूट संबंध नहीं हो सकता है जितना अधिक हम विचारों को प्रकट करते हैं, उतने ही नवीन विचार हमारे मन में उठते रहते हैं। हम मातृभाषा के माध्यम से ही इन विचारों को पूर्णता के साथ प्रकट करते हैं और दूसरे के विचारों के भाव के अर्थ को पूर्णता के साथ ग्रहण करते हैं

 

अतः इन बातों को ध्यान में रखते हुए NCF 2005 ने काल्पनिक चिंतनार्थ एवं साक्षरता द्वारा ज्ञानार्जन मातृभाषा को माना है।

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