लेखन-प्रक्रियाम् अन्तर्निहिताः सन्ति -

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CTET Paper 1 - 22nd Dec 2021 (English-Hindi-Sanskrit)
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  1. विचारोत्तेजनं, योजना- विधानं (Outlining), पाण्डुलेखनं (Drafting), सशोधनं (Revising), त्रुटिशोधनं (Proof-Reading), अंतिम प्रारूपम् (Final Drafting)
  2. विचारोत्तेजनं,  योजना- विधानं (Outlining), प्रारूपीकरणम् (Drafting), पाण्डुलेखनं (Handwriting), अन्तिम- प्रारूपम् (Final Drafting)
  3. विचारोत्तेजनं, योजना- विधानं (Outlining), प्रारूपीकरणं (Drafting), परामर्शाः, अन्तिम- प्रारूपम् (Final Drafting)
  4. विचारोत्तेजनं,  योजना- विधानं (Outlining), प्रारूपीकरणम् ( Drafting), अन्तिम- प्रारूपम् (Final Drafting)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : विचारोत्तेजनं, योजना- विधानं (Outlining), पाण्डुलेखनं (Drafting), सशोधनं (Revising), त्रुटिशोधनं (Proof-Reading), अंतिम प्रारूपम् (Final Drafting)
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अनुवाद - लेखन प्रक्रिया में अन्तर्निहित हैं - 

स्पष्टीकरण

  • भाषा कौशलों में सबसे अन्तिम कौशल लेखन कौशल (प्रक्रिया) है।
  • जिसके अन्तर्गत भाषाधिगमकर्ता भाषा के तीन कौशलों (श्रवण, भाषण, वाचन) का अधिगम करने के पश्चात् वह इतना समर्थ हो जाता है कि वह उस भाषा विशेष में लिखऩे में समर्थ हो जाता है।
  • लेखन प्रक्रिया अत्यंत रचनात्मक तथा स्वतंत्र अभिव्यक्तात्मक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत लेखक अपने विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति अपनी रचनात्मक प्रतिभा के माध्यम से करता है।

Important Points

  • लेखन  की इस प्रतिभा में भी उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए इसके कुछ सोपान हैं, जिसके आधार पर लेखन को और प्रभावी रूप दिया जा सकता है - 
    • विचारोत्तेजन - लेखन के प्रारम्भ में लिखने के लिए विचारों का होना अत्यंत आवश्यक है, जो एक लेखक को लेखन के लिए प्रेरित करती है। विचारोत्तेजन की इस प्रक्रिया में लेखक किसी विषय के प्रति अत्यंत चिन्तन करता है, जो उसे एक प्रभावी लेखन के लिए बाध्य करती है। यही प्रक्रिया विचारोत्तेजन है।
    • योजना विधान - विचारोत्तेजन के बाद उस का लिखित स्वरूप क्या होना चाहिये, उस लेखन योजना का विधान करना योजना विधान है।
    • पाण्डुलेखन - तदुपरांत उस योजना विधान को लिखित स्वरूप प्रदान करना पाण्डुलेखन के अन्तर्गत आता है।
    • संशोधन - पाण्डुलेखन के पश्चात् उस लिखित स्वरूप को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उसमें किन्हीं वाक्यों का संशोधन करना तथा किन्हीं वाक्यों को जोड़ना संशोधन के अन्तर्गत आता है।
    • त्रुटिसंशोधन -  तदुपरांत सम्पूर्ण लेखन के पश्चात् उस लेखन में वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों का संशोधन करना त्रुटि संशोधन के अन्तर्गत आता है।
    • अन्तिम प्रारूप - त्रुटि संशोधन के पश्चात् उसका सम्यक् प्रकार से सोपानों के साथ उसका लेखन करना अन्तिम प्रारूप है, जिसमें वह लेख एक पाठक के लिए तैयार होता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि लेखन प्रक्रिया के सोपानों का क्रम विचारोत्तेजनं, योजना- विधानं (Outlining), पाण्डुलेखनं (Drafting), सशोधनं (Revising), त्रुटिशोधनं (Proof-Reading), अंतिम प्रारूपम् (Final Drafting) यह है, जो एक प्रभावी लेखन के स्वरूप को दर्शाता है।

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