Question
Download Solution PDF'कविता करना अनंत पुण्य का फल है। इस दुराशा और अनंत उत्कंठा से कवि जीवन व्यतीत करने की इच्छा हुई । संसार के समस्त अभावों को असंतोष कहकर ह्रदय को धोखा देता रहा। परंतु कैसी विडंबना लक्ष्मी के लालों का भ्रूभंग और क्षोभ की ज्वाला के अतिरिक्त मिला क्या !' - यह कथन 'स्कंदगुप्त' नाटक में किसके द्वारा कहा गया है?
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDF'कविता करना अनंत पुण्य का फल है। इस दुराशा और अनंत उत्कंठा से कवि जीवन व्यतीत करने की इच्छा हुई । संसार के समस्त अभावों को असंतोष कहकर ह्रदय को धोखा देता रहा। परंतु कैसी विडंबना लक्ष्मी के लालों का भ्रूभंग और क्षोभ की ज्वाला के अतिरिक्त मिला क्या!' - यह कथन 'स्कंदगुप्त' नाटक में मातृगुप्त द्वारा कहा गया है।
Key Points
स्कंदगुप्त -
- रचनाकार - जयशंकर प्रसाद
- प्रकाशन वर्ष - 1928 ई.
- विधा – नाटक
- पात्र –
- स्कन्दगुप्त, कुमारगुप्त, गोविन्दगुप्त, पर्णदत्त, चक्रपालित, बन्धुवर्म्मा, भीमवर्म्मा, मातृगुप्त, प्रपञ्चबुद्धि, शर्वनाग, कुमारदास (धातुसेन), पुरगुप्त, भटार्क, पृथ्वीसेन, खिङ्गिल, मुद्गल, प्रख्यातकीति, देवकी, अनन्तदेवी, जयमाला, देवसेना, विजया, कमला, रामा, मालिनी आदि।
- मुख्य –
- इसमें पाँच अंक हैं तथा अध्यायों की योजना दृश्यों पर आधारित है।
- प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ अंक में सात और तृतीय तथा पंचम अंक में छह दृश्य हैं।
- इसमें कुमार गुप्त के विलासी साम्राज्य की उसे स्थिति का चित्रण है जहां आंतरिक कलाएं संघर्ष और विदेशी आक्रमण के फलस्वरूप उसके भावी क्षय के लक्षण प्रकट होने लगे थे।
Important Points
जयशंकर प्रसाद -
- जन्म -1889 - 1937 ई.
- जन्मस्थान - काशी,उत्तर प्रदेश
- उपनाम - झारखंडी/ कलाधर / खांडे राव
- गुरु – मोहिनीलाल
- जयशंकर प्रसाद के नाटक –
- सज्जन (1910 ई.)
- कल्याणी परिणय (1912 ई.)
- करुणालय (1912 ई.)
- प्रायश्चित (1913 ई.)
- राज्यश्री (1915 ई.)
- विशाख (1921 ई.)
- अजातशत्रु (1922 ई.)
- जनमेजय का नागयज्ञ (1926 ई.)
- कामना (1927 ई.)
- स्कंदगुप्त (1928 ई.)
- एक घूंट (1930 ई.)
Additional Information
- जयशंकर प्रसाद ब्रजभाषा में कलाधर नाम से रचना करते थे।
- जयशंकर प्रसाद को छायावाद का 'ब्रह्म' कहा जाता है।
- मुकटधर पांडे के अनुसार ये 'छायावाद के प्रवर्तक' है।
- छायावादी शैली का प्रथम काव्य संग्रह 'झरना'( 1918 ई.)
- जयशंकर प्रसाद ने (1909 ई.) में 'इंदु' पत्रिका का संपादन किया।
Last updated on Jun 22, 2025
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