रेखामहोदया स्ववृत्तिमनुसृत्य प्रथमम् तु पाठ्यमान-प्रकरणं विस्तृतरूपेण पाठयति, तदन्तरम् अधीतप्रकरणस्य सारांश प्रस्तौति। रेखामहोदया किं शिक्षण-प्रविधिं अङ्गीकरोति?

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CTET Paper 2 Social Science 28th Dec 2021 (English-Hindi-Sanskrit)
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  1. सरलतः कठिनं प्रति
  2. मूर्ततः अमूर्तं प्रति
  3. विश्लेषणतः संश्लेषणं प्रति
  4. आगमनः निगमनं प्रति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : विश्लेषणतः संश्लेषणं प्रति
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अनुवाद - रेखा महोदया अपनी वृत्ति का अनुसरण करके पहले तो पढ़ायी जाने वाले प्रकरण को विस्तृत रूप से पढ़ाती हैं, उसके बाद पढ़े गये प्रकरण का सांराश प्रस्तुत करती है। रेखा महोदया कौन सी शिक्षण प्रविधि का अनुसरण करती है?

स्पष्टीकरण  - 

  • शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को सरलतया अधिगम कराने के लिए अनेक विधियों, सहायक सामग्रियोंं का निर्माण किया गया हैं, जिनका प्रयोग शिक्षक छात्रों के स्तर के अनुसार करता है। 
  • जिससे छात्रों के लिए कठिन से कठिन विषय भी अधिगम करने में सरल हो जाता है। 
  • जिससे शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति भी शीघ्र हो जाती है।
  • जिसके लिए कई बार शिक्षक विषय को रोचक तथा आकर्षक बनाने के लिए सहायक सामग्रियों का प्रयोग करने के साथ-साथ अनेक विधियों का भी प्रयोग करते हैं। 
  • उपर्युक्त परिस्थिति में भी शिक्षिका द्वारा विषय को सरल बनाने लिए तथा छात्रों को सम्यक् रूप से विषय को अधिगम कराने के लिए विश्लेषण से संश्लेषण तक के शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया गया है।
  • इस सूत्र के अन्तर्गत शिक्षिका द्वारा प्रत्येक विषय का पूर्णतया विश्लेषित किया है, जिससे छात्रों को विषय के प्रत्येक पक्ष पूर्ण रूप से स्पष्ट हो, जिससे छात्र विषय को समझने में कठिनाई अनुभव न करें। 
  • तदुपरांत उस विषय को सारांश रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करती है, ताकि छात्र को यदि किञ्चित् भी संशय हो तो सारांश के माध्यम से वह प्रकरण स्पष्ट हो जाए।

 

अतः शिक्षिका द्वारा उपर्युक्त परिस्थिति में विश्लेषण से संश्लेषण के प्रति शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया गया है।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • सरलतः कठिनं प्रति - (सरल से कठिन की ओर) - इसके अन्तर्गत छात्रों को सर्वप्रथम विषय के सरल पक्ष से अवगत कराया जाता है ताकि छात्र विषय में रुचि लें। तदुपरांत कठिन पक्ष का बोध कराया जाता ,है ताकि छात्र उस विषय को ध्यानपूर्वक समझ सकें।
  • मूर्ततः अमूर्तं प्रति - (मूर्त से अमूर्त की ओर) - इसके अंतर्गत छात्रों को सर्वप्रथम प्रत्यक्ष होने वाली वस्तुओं के माध्यम से विषय का अधिगम कराना, जिससे छात्र विषय को समझ सकें तदुपरांत अप्रत्यक्ष रूप से विषय का बोध कराना क्योंकि प्रत्यक्ष होने वाले विषय अधिक समय तक स्थायी रहते हैं। 
  • आगमनः निगमनं प्रति - (आगमन से निगमन की ओर) - इसके अन्तर्गत  सर्वप्रथम छात्रों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनका चिन्तन करते हुए छात्र उन उदाहरणों के माध्यम से एक नियम को समझते हैं।
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