Question
Download Solution PDFप्राचीन समये वर्ण व्यवस्थायाः आधार आसीत्
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद- प्राचीन समय में वर्ण व्यवस्था का आधार था-
गुण व कर्म के आधार पर वर्ण-व्यवस्था :
- वस्तुत: ऋग्वैदिक समाज अर्थात प्राचीन भारत की वर्ण व्यवस्था उन्मुक्त थी। यह जन्म या वंश आधारित नहीं बल्कि गुण व कर्म आधारित थी ‘शूद्र’ तथा ‘वैश्य’ शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ में मिलता है।
- भगवद्गीता में कृष्ण नें बताया है कि “चारों वर्णों की उत्पत्ति गुण व कर्म के आधार पर की गई है। ” वायु पुराण में भी पूर्व जन्मों के कर्म को विभिन्न वर्णों की उत्पति का कारण बताया गया है। चातुर्वर्ण की उत्पति विषयक कर्म का सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण है जब आर्य भारत में बस गये तो उन्होने भिन्न भिन्न कर्मों के आधार पर विभिन्न वर्गों का विभाजन किया।
जो व्यक्ति यज्ञादि कर्म करते थे उन्हें ‘ब्रह्म’ (ब्राह्मण)
जो युद्ध में निपुण थे उन्हें ‘क्षत्र’ (क्षत्रिय)
शेष जनता को ‘विश’ (वैश्य) कहा गया।
- वर्ण-व्यवस्था का यह प्रारम्भिक स्वरूप था। ऋग्वेद के दशम मण्डल के पुरुष सुक्त में सर्वप्रथम ‘शुद्र’ वर्ण का उल्लेख मिला है। रामशरण शर्मा के अनुसार, ”शूद्र वर्ण में आर्य तथा अनार्य दोनों ही वर्गों के व्यक्ति सम्मिलित थे।
- आर्थिक सामाजिक विषमताओं ने दोनों ही वर्ग में श्रमिक वर्ग को जन्म दिया। कालान्तर में सभी श्रमिकों को ‘शूद्र’ कहा जाने लगा।” अथर्ववैदिक काल के अन्त में शूद्रों को समाज में एक वर्ग के रूप में मान्यता मिला गई।
इसप्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र यह प्राचीन समय की वर्ण व्यवस्था का आधार गुणकर्म विभाग था।
Last updated on Jul 19, 2025
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