नाटकशिक्षणविधिषु दोषाणामाधारेण विधिरयं श्रेष्ठ इति - आद्रियते । 

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RPSC 2nd Grade Sanskrit (Held on 30th June 2017) Official Paper
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  1. कक्षाभिनयविधिः
  2. व्याख्या विधिः
  3. समवाय विधिः
  4. रङ्गमञ्चाभिनयविधिः

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Option 3 : समवाय विधिः
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RPSC Senior Grade II (Paper I): Full Test 1
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प्रश्न अनुवाद  - नाटक शिक्षण विधियों में दोषों के आधार से कौनसी विधि श्रेष्ठ है तथा सम्माननीय है?

स्पष्टीकरण - नाटक शिक्षण विधियों में दोषों के आधार से समवाय विधि श्रेष्ठ है तथा सम्माननीय है

नाटक - 

दृश्य श्रव्य काव्य को नाटक कहते हैं, नाटक, काव्य का एक रूप है, जो श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति के साथ साथ संस्कृति तथा संस्कारों का भी ज्ञान कराता है। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है।

नाटक शिक्षण के उद्देश्य  -

  • नाटक में पात्रों द्वारा संस्कृति शिक्षण तथा संस्कार शिक्षण करवाना।
  • छात्रों में निरीक्षण कल्पना, चिंतन एवं विवेचन की योग्यता का विकास करवाना।
  • मनोरंजन करना।
  • बालकों को अभिनय कला का ज्ञान करवाना। 
  • बालकों में अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुतिकरण का विकास करवाना, आदि।

इन उद्देश्यों की पूर्ती करने के लिए कुछ विधियों का उपयोग किया जाता है जैसे की - 

नाटक शिक्षण की विधियाँ-

  • कक्षाभिनयविधिः - इसमे शिक्षक के मार्गदर्शन के अनुसार छात्र अपनी अपनी भूमिका के अनुसार नाटक का अभिनय कक्षा के अन्दर ही करते हैं। इस विधि में छात्र सक्रिय होकर भाग लेते हैं।इसमे समय कम लगता है।
  • व्याख्या विधिः - इस विधि में शिक्षक नाटक की कथा पात्रा, कथोपकथन, भाषा शैली आदि की व्याख्या करते है। यह व्याख्या प्रश्नोतर द्वारा की जाती है। तथा इसमे नाटक के गुण दोषों का भी विवेचन किया जाता है। इसमे अध्यापक सक्रिय रहते है तथा छात्र मात्र श्रोता बनकर सुनते रहते हैं। अत: इसमे अभिनय तत्व का अभाव होता है ।
  • रङ्गमञ्चाभिनयविधिः -  इस विधि में नाटक को रंगमंच पर विधि पूर्वक खेला जाता है। इस विधि मे छात्र अपने-अपने पात्रानुसार पात्रानुकूल वैशभूषा पहनकर वास्तविक रङ्गमञ्च पर अभिनय करते है। यह विधि प्रभावपूर्ण तो है किन्तु कक्षा शिक्षण की दृष्टि से व्यवहारिक नहीं है।तथा यह अधिक खर्चीली विधि है।

उपर्युक्त तीनों विधियों मे कुछ गुण तो कुछ दोष दिखाई पड़ते है, कोई भी विधि सर्वोतम दिखायी नही पड़ती है। ऐसी स्थिति में सभी विधियों को समवाय करके के नाटक शिक्षण कराया जाएं तो वहा एक उत्तम पर्याय हो सकता है।

अत: नाटक शिक्षण विधियों में दोषों के आधार से समवाय विधि का उपयोग किया जाता है।

समवाय शिक्षण विधि - 

  • यह साथ-साथ अर्थात् दो तत्वों के साथ भी चलती है।
  • इस विधि में सभी विधाओं का अध्ययन एक साथ कराया जाता है। इसलिए इसे सहयोग विधि भी कहते है।
  • समवाय शिक्षण विधि में विभिन्न विषयों में निहित ज्ञान की एकता को स्पष्ट करने के लिए सहसम्बन्ध आवश्यक है।
  • यह विधि कम खर्चीली एवं अधिक उपयोगी है।

अत: अन्य विधियों का मिश्रण करके अध्यापक सहयोग विधि से नाटक शिक्षण सहजता से दे सकते हैं।

अत: यह स्पष्ट है की नाटक शिक्षण विधियों में दोषों के आधार से समवाय विधि श्रेष्ठ है तथा सम्माननीय है।

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Last updated on Jul 19, 2025

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-> The applications can be submitted online between 19th August and 17th September 2025.

-> The written examination for RPSC 2nd Grade Teacher Recruitment (Secondary Ed. Dept.) will be communicated soon.

->The subjects for which the vacancies have been released are: Hindi, English, Sanskrit, Mathematics, Social Science, Urdu, Punjabi, Sindhi, Gujarati.

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